Saturday 10 September 2016

शरीर के पंचतत्व और इस में गडबडि आने से होने वाली तकलीफे।

 
शरीर के पंचतत्व और इस में गडबडि आने से होने वाली तकलीफे।
    
         आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना है । इस पंचतत्व में पृथ्वी, जल , अग्नि , वायु , आकाश का समावेश होता है ।मूल रुप से ये सब मूल तत्व अपनी मात्रा में बराबर रहने चहिए । इसे 'शारीरिक संगठन '
(metabolism) कहते है । जब उसमे गडबडि होती है , या किसी एक तत्व में त्रुटि आजाने अथवा व्रुध्धी हो जाने से दूसरे तत्वों में गडबडि आती है , तो उसके कारण रोगों कि उत्पति होती है ।
1 पृथ्वी(earth):
इस तत्व से शरीर के सभी जैविक बल निष्क्रिय एवं अचेतन बन जाते है । अत: उन सबको सक्रिय रखने के लिए अधिक शक्त्ति कि ज़रूरत पडती है । अधिक वजनवाले , मांसल , चरबीयुक्त व्यक्ति इस तत्व के आधिपत्य के उदाहरण है । ऐसे लोग निशिँत होते है । उनमें कुछ प्राप्त करने कि उत्सुकता नही रहती । वे संघर्ष से दूर भागते है । उनका जीवन सुस्त (मंद ) रहता है ।जब शरीर में यह तत्व त्रुतिपुर्ण रहता है ,तब ऐसे लोग स्वार्थी बनते है और स्वार्थयुक्त आनंद लेते है ।यह तटस्थ तत्व है ।
2 जल (water):
यह शरीर एवं जीवन प्रवाह को सुरक्षित रखता है ।शीतलता इस का स्वभाव है । शरीर में 70 प्रतिशत से अधिक पानी रहता है ।अत: शरीर के तापमान को बनाए रखने तथा रुधिर आदि कि कार्य पध्दति में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है । यह ऋण तत्व है ।
3 अग्नि (fire )
यह शरीर में अग्नि उत्पन्न कर जल को उष्णता प्रदान करता है । यह दृष्टि का नियंत्रण करता है । आहार का पाचन कर शरीर को शक्ति प्रदान करता है । भूख और प्यास को प्रेरित करता है । स्नायुओ का स्थितिस्थापकता बनाए रखता है एवं चेहरे को सुन्दरता प्रदान करता है । यह विचार शक्ति का सहायक बनता है । मस्तिष्क कि भेद अंतर परखनेवाली शक्ति सरल बनाता है तथा रोग प्रतिकार तत्व उत्पन्न करने में मदद करता है । यह हमारे शरीर रूपी गाड़ी कि स्टार्टर है । इस तत्व में कमी या त्रुटि आने पर एनीमिया , पीलिया , पाचन आदि से संबंधित तकलीफें होती है । यह बेहोशी , मस्तिष्क संबंधी अव्यवस्था , तनाव , दृष्टि-शक्ति कि कमजोरी , मोतिया बिंदु , एसिडिटी आदि तकलीफें उत्पन्न करता है । यह त्वचा संबंधी तकलीफें तथा रंगतत्व कि कमी उत्पन्न करता है । इसी लिए पुर्वीय चिकित्सा पद्धतियों में अग्नि तत्व कि हिफाजत व नियंत्रण को विशेष महत्व दिया गया है । यह धन तत्व है ।
4 वायु (air):
यह तत्व ही जीवन है । यह एक शक्ति है और शरीर के प्रत्येक भाग का संचालन करता है । यह हृदय कि क्रिया रुधिराभिसरण को नियंत्रण करता है और शारीरिक संतुलन बनाए रखता है । यह श्वसन एवं मल मूत्र कि गति में मदद करता है । यह आवाज उत्पन्न करता है । मानसिक शक्ति तथा स्मरण शक्ति कि क्षमता व नजाकत को पोषण प्रदान करता है । अपने आप गति करने में असमर्थ पित्तरस और कफ को यह गति देता है । यह धन तत्व है ।
5 आकाश (sky)
शरीर में हवा का वहन होता है और वह आवश्यक संतुलन बनाए रखता है।  इसलिए शरीर में पोल भी होनी ही चहिए । यदि यह वहन या भ्रमण बंद हो जाए या इसमें रुकावट आ जाए ,तो शरीर में पीडा होती है । जिसकी परिणति हार्ट अटैक , लकवा , मूर्छा आदि में हो सकती है । यह ऋण तत्व है ।