आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना है । इस पंचतत्व में पृथ्वी, जल , अग्नि , वायु , आकाश का समावेश होता है ।मूल रुप से ये सब मूल तत्व अपनी मात्रा में बराबर रहने चहिए । इसे 'शारीरिक संगठन '
(metabolism) कहते है । जब उसमे गडबडि होती है , या किसी एक तत्व में त्रुटि आजाने अथवा व्रुध्धी हो जाने से दूसरे तत्वों में गडबडि आती है , तो उसके कारण रोगों कि उत्पति होती है ।
1 पृथ्वी(earth):
इस तत्व से शरीर के सभी जैविक बल निष्क्रिय एवं अचेतन बन जाते है । अत: उन सबको सक्रिय रखने के लिए अधिक शक्त्ति कि ज़रूरत पडती है । अधिक वजनवाले , मांसल , चरबीयुक्त व्यक्ति इस तत्व के आधिपत्य के उदाहरण है । ऐसे लोग निशिँत होते है । उनमें कुछ प्राप्त करने कि उत्सुकता नही रहती । वे संघर्ष से दूर भागते है । उनका जीवन सुस्त (मंद ) रहता है ।जब शरीर में यह तत्व त्रुतिपुर्ण रहता है ,तब ऐसे लोग स्वार्थी बनते है और स्वार्थयुक्त आनंद लेते है ।यह तटस्थ तत्व है ।
2 जल (water):
यह शरीर एवं जीवन प्रवाह को सुरक्षित रखता है ।शीतलता इस का स्वभाव है । शरीर में 70 प्रतिशत से अधिक पानी रहता है ।अत: शरीर के तापमान को बनाए रखने तथा रुधिर आदि कि कार्य पध्दति में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है । यह ऋण तत्व है ।
3 अग्नि (fire )
यह शरीर में अग्नि उत्पन्न कर जल को उष्णता प्रदान करता है । यह दृष्टि का नियंत्रण करता है । आहार का पाचन कर शरीर को शक्ति प्रदान करता है । भूख और प्यास को प्रेरित करता है । स्नायुओ का स्थितिस्थापकता बनाए रखता है एवं चेहरे को सुन्दरता प्रदान करता है । यह विचार शक्ति का सहायक बनता है । मस्तिष्क कि भेद अंतर परखनेवाली शक्ति सरल बनाता है तथा रोग प्रतिकार तत्व उत्पन्न करने में मदद करता है । यह हमारे शरीर रूपी गाड़ी कि स्टार्टर है । इस तत्व में कमी या त्रुटि आने पर एनीमिया , पीलिया , पाचन आदि से संबंधित तकलीफें होती है । यह बेहोशी , मस्तिष्क संबंधी अव्यवस्था , तनाव , दृष्टि-शक्ति कि कमजोरी , मोतिया बिंदु , एसिडिटी आदि तकलीफें उत्पन्न करता है । यह त्वचा संबंधी तकलीफें तथा रंगतत्व कि कमी उत्पन्न करता है । इसी लिए पुर्वीय चिकित्सा पद्धतियों में अग्नि तत्व कि हिफाजत व नियंत्रण को विशेष महत्व दिया गया है । यह धन तत्व है ।
4 वायु (air):
यह तत्व ही जीवन है । यह एक शक्ति है और शरीर के प्रत्येक भाग का संचालन करता है । यह हृदय कि क्रिया रुधिराभिसरण को नियंत्रण करता है और शारीरिक संतुलन बनाए रखता है । यह श्वसन एवं मल मूत्र कि गति में मदद करता है । यह आवाज उत्पन्न करता है । मानसिक शक्ति तथा स्मरण शक्ति कि क्षमता व नजाकत को पोषण प्रदान करता है । अपने आप गति करने में असमर्थ पित्तरस और कफ को यह गति देता है । यह धन तत्व है ।
5 आकाश (sky)
शरीर में हवा का वहन होता है और वह आवश्यक संतुलन बनाए रखता है। इसलिए शरीर में पोल भी होनी ही चहिए । यदि यह वहन या भ्रमण बंद हो जाए या इसमें रुकावट आ जाए ,तो शरीर में पीडा होती है । जिसकी परिणति हार्ट अटैक , लकवा , मूर्छा आदि में हो सकती है । यह ऋण तत्व है ।
(metabolism) कहते है । जब उसमे गडबडि होती है , या किसी एक तत्व में त्रुटि आजाने अथवा व्रुध्धी हो जाने से दूसरे तत्वों में गडबडि आती है , तो उसके कारण रोगों कि उत्पति होती है ।
1 पृथ्वी(earth):
इस तत्व से शरीर के सभी जैविक बल निष्क्रिय एवं अचेतन बन जाते है । अत: उन सबको सक्रिय रखने के लिए अधिक शक्त्ति कि ज़रूरत पडती है । अधिक वजनवाले , मांसल , चरबीयुक्त व्यक्ति इस तत्व के आधिपत्य के उदाहरण है । ऐसे लोग निशिँत होते है । उनमें कुछ प्राप्त करने कि उत्सुकता नही रहती । वे संघर्ष से दूर भागते है । उनका जीवन सुस्त (मंद ) रहता है ।जब शरीर में यह तत्व त्रुतिपुर्ण रहता है ,तब ऐसे लोग स्वार्थी बनते है और स्वार्थयुक्त आनंद लेते है ।यह तटस्थ तत्व है ।
2 जल (water):
यह शरीर एवं जीवन प्रवाह को सुरक्षित रखता है ।शीतलता इस का स्वभाव है । शरीर में 70 प्रतिशत से अधिक पानी रहता है ।अत: शरीर के तापमान को बनाए रखने तथा रुधिर आदि कि कार्य पध्दति में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है । यह ऋण तत्व है ।
3 अग्नि (fire )
यह शरीर में अग्नि उत्पन्न कर जल को उष्णता प्रदान करता है । यह दृष्टि का नियंत्रण करता है । आहार का पाचन कर शरीर को शक्ति प्रदान करता है । भूख और प्यास को प्रेरित करता है । स्नायुओ का स्थितिस्थापकता बनाए रखता है एवं चेहरे को सुन्दरता प्रदान करता है । यह विचार शक्ति का सहायक बनता है । मस्तिष्क कि भेद अंतर परखनेवाली शक्ति सरल बनाता है तथा रोग प्रतिकार तत्व उत्पन्न करने में मदद करता है । यह हमारे शरीर रूपी गाड़ी कि स्टार्टर है । इस तत्व में कमी या त्रुटि आने पर एनीमिया , पीलिया , पाचन आदि से संबंधित तकलीफें होती है । यह बेहोशी , मस्तिष्क संबंधी अव्यवस्था , तनाव , दृष्टि-शक्ति कि कमजोरी , मोतिया बिंदु , एसिडिटी आदि तकलीफें उत्पन्न करता है । यह त्वचा संबंधी तकलीफें तथा रंगतत्व कि कमी उत्पन्न करता है । इसी लिए पुर्वीय चिकित्सा पद्धतियों में अग्नि तत्व कि हिफाजत व नियंत्रण को विशेष महत्व दिया गया है । यह धन तत्व है ।
4 वायु (air):
यह तत्व ही जीवन है । यह एक शक्ति है और शरीर के प्रत्येक भाग का संचालन करता है । यह हृदय कि क्रिया रुधिराभिसरण को नियंत्रण करता है और शारीरिक संतुलन बनाए रखता है । यह श्वसन एवं मल मूत्र कि गति में मदद करता है । यह आवाज उत्पन्न करता है । मानसिक शक्ति तथा स्मरण शक्ति कि क्षमता व नजाकत को पोषण प्रदान करता है । अपने आप गति करने में असमर्थ पित्तरस और कफ को यह गति देता है । यह धन तत्व है ।
5 आकाश (sky)
शरीर में हवा का वहन होता है और वह आवश्यक संतुलन बनाए रखता है। इसलिए शरीर में पोल भी होनी ही चहिए । यदि यह वहन या भ्रमण बंद हो जाए या इसमें रुकावट आ जाए ,तो शरीर में पीडा होती है । जिसकी परिणति हार्ट अटैक , लकवा , मूर्छा आदि में हो सकती है । यह ऋण तत्व है ।