नाभिचक्र को ठीक करने का आसान तरीका
परिचय:
मनुष्य के शरीर के विकास, नियंत्रण तथा संचालन में नाभि महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। माता के पेट में गर्भाधारण के समय से लेकर मृत्यु तक नाभि केन्द्र सतर्क, सक्रिय तथा सजग रहता है। माता के गर्भ के समय में नवजात शिशु का नाभि केन्द्र ही विकसित होता है। नवजात शिशु में नाभि केन्द्र ही प्राणों का संचय करता है। इसी के कारण ही उसके शरीर का विकास होता है।
मनुष्य के शरीर के विकास, नियंत्रण तथा संचालन में नाभि महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। माता के पेट में गर्भाधारण के समय से लेकर मृत्यु तक नाभि केन्द्र सतर्क, सक्रिय तथा सजग रहता है। माता के गर्भ के समय में नवजात शिशु का नाभि केन्द्र ही विकसित होता है। नवजात शिशु में नाभि केन्द्र ही प्राणों का संचय करता है। इसी के कारण ही उसके शरीर का विकास होता है।
यदि नाभि शरीर में ठीक जगह न हो तो या फिर वह अपने स्थान से हट जाए, तो उसे `धरण पड़ गई` कहते हैं। इसके कारण शरीर में और भी कई रोग हो जाते हैं जैसे- यदि नाभि ऊपर की ओर चली गई तो गैस, खट्टी डकारें ,कब्ज तथा कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। यदि नाभि नीचे की ओर चली गई हो या फिर नीचे की ओर खिसक गई तो रोगी को दस्त लगना, जी-मिचलाना जैसे रोग हो जाते हैं।
नाभिचक्र का अपने स्थान से हटने के कारण:-
व्यक्ति के चलने-फिरने में असावधानी, अत्यधिक कूदने-फांदने, अधिक वजन उठाने वाले कार्य करने या किसी प्रकार से ऊंची-नीची जमीन पर अचानक पैर पड़ जाने से झटका लगता है तो यह रोग उस व्यक्ति को हो जाता है। अधिक बोझ उठाने तथा गलत तरीके के खान-पान के कारण भी यह रोग हो सकता है।
व्यक्ति के चलने-फिरने में असावधानी, अत्यधिक कूदने-फांदने, अधिक वजन उठाने वाले कार्य करने या किसी प्रकार से ऊंची-नीची जमीन पर अचानक पैर पड़ जाने से झटका लगता है तो यह रोग उस व्यक्ति को हो जाता है। अधिक बोझ उठाने तथा गलत तरीके के खान-पान के कारण भी यह रोग हो सकता है।
नाभिचक्र आपने स्थान पर है या नहीं यह पता लगाने के लिए कुछ दिशा निर्देश:-
(1) नाभिचक्र अपने स्थान पर है या नहीं यह पता लगाने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में शौच क्रिया के बाद पीठ के बल सीधा लेट जाना चाहिए।रोगी व्यक्ति को अपने हाथ बगल में शरीर के साथ सीधे रखने चाहिए तथा दूसरे व्यक्ति को कहना चाहिए कि एक धागा लेकर नाभि से छाती की एक तरफ की निप्पल तक नापे।इसके बाद रोगी को यह क्रिया दूसरे निप्पल के साथ भी करनी चाहिए और पता करना चाहिए कि दोनों तरफ के निप्पल के साथ धागे की समान दूरी है या नहीं।
यदि निप्पल के दोनों ओर की दूरी समान नहीं है तो समझा लेना चाहिए कि नाभिचक्र अपने स्थान से हट गई है और यदि दूरी समान है तो समझना चाहिए कि नाभिचक्र अपने स्थान पर है।
(2) नाभिचक्र का अपने स्थान से हट जाने का पता लगाने का एक तरीका यह भी है कि सुबह के समय में खाली पेट पीठ के बल अपने दोनों टांगों को सीधा करके लेट जाए।यदि नाभिचक्र अपने स्थान से हटा हुआ होगा तो किसी एक पैर का अंगूठा दूसरे पैर के अंगूठे से कुछ ऊंचा उठा हुआ रहेगा अन्यथा नहीं। इसी तरह हाथ कि छोटी उंगली और रेखाए मिलाकर छोटी उंगली कि लम्बाई देखे ।ए बराबर होनी चाहिए। ऊपर -नीचे हो तो नाभीचक्र अपने स्थान से हटा हुआ होगा ।
यदि निप्पल के दोनों ओर की दूरी समान नहीं है तो समझा लेना चाहिए कि नाभिचक्र अपने स्थान से हट गई है और यदि दूरी समान है तो समझना चाहिए कि नाभिचक्र अपने स्थान पर है।
(2) नाभिचक्र का अपने स्थान से हट जाने का पता लगाने का एक तरीका यह भी है कि सुबह के समय में खाली पेट पीठ के बल अपने दोनों टांगों को सीधा करके लेट जाए।यदि नाभिचक्र अपने स्थान से हटा हुआ होगा तो किसी एक पैर का अंगूठा दूसरे पैर के अंगूठे से कुछ ऊंचा उठा हुआ रहेगा अन्यथा नहीं। इसी तरह हाथ कि छोटी उंगली और रेखाए मिलाकर छोटी उंगली कि लम्बाई देखे ।ए बराबर होनी चाहिए। ऊपर -नीचे हो तो नाभीचक्र अपने स्थान से हटा हुआ होगा ।
नाभिचक्र का अपने स्थान पर हट जाने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
(1) अपने पैरों को नापने पर अंगूठा यदि नीचे की ओर दिखे तो उसे ऊपर की ओर खींचें। इस प्रकार की क्रिया 5-6 बार करें। ऐसा करने से नाभिचक्र अपने स्थान पर आ जाता है।
(2) नाभिचक्र को अपने स्थान पर करने के लिए सुबह के समय में रोगी व्यक्ति को बिना खाना खाए जमीन पर या तख्त पर सीधे लेट जाना चाहिए। इसके बाद अपनी टांगों को सामने की ओर फैला दें। फिर दायीं टांग के घुटने को ऊपर की ओर रखकर दाएं हाथ से दाएं घुटने पर थोड़ा सा दबाव देकर भूमि या तख्त पर लगाने की कोशिश करना चाहिए। लेकिन दबाव देते समय एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि दबाव उतना ही दे जितना रोगी व्यक्ति सहन कर पाए। ठीक इसी प्रकार की क्रिया दूसरी टांग पर भी करनी चाहिए। इसके बाद 5 से 6 बार इस क्रिया को दोहराना भी चाहिए।
(3) नाभिचक्र अपने स्थान से हट जाने पर नाभि के अन्दर 2-3 बूंद तेल डालें। इसके बाद नाभि के चारों ओर तेल लगाकर दाईं से बाईं तरफ कम से कम तीन बार मालिश करें। इसके बाद नाभि के चारों ओर कम से कम तीन बार बाईं से दाईं तरफ मालिश करें।
(3) नाभिचक्र अपने स्थान से हट जाने पर नाभि के अन्दर 2-3 बूंद तेल डालें। इसके बाद नाभि के चारों ओर तेल लगाकर दाईं से बाईं तरफ कम से कम तीन बार मालिश करें। इसके बाद नाभि के चारों ओर कम से कम तीन बार बाईं से दाईं तरफ मालिश करें।
इस प्रकार से उपचार करने से नाभिचक्र अपने स्थान पर आ जाता है।
(4) नाभिचक्र अपने स्थान से हट जाने पर रोगी के दोनों पैरों के अंगूठों में धागा बांध दें।
(5) नाभिचक्र के अपने स्थान पर हटने पर नाभिचक्र को ठीक करने के लिए अर्थात नाभि को अपने स्थान पर लाने के लिए कई प्रकार के आसन है जिनको करने पर नाभिचक्र अपने स्थान पर आ जाता है।
आसन कुछ इस प्रकार के हैं- धनुरासन, नौकासन, भुजंगासन, चक्रासन, शवासन तथा उत्तानपादासन।
आसन कुछ इस प्रकार के हैं- धनुरासन, नौकासन, भुजंगासन, चक्रासन, शवासन तथा उत्तानपादासन।
नाभिचक्र के अपने स्थान पर आ जाने के बाद निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिए ताकि नाभिचक्र फिर से अपने स्थान से न हट जाए:-
सावधानियां-
(1) जब नाभिचक्र अपने स्थान पर आ जाए इसके बाद रोगी व्यक्ति को जब भी उठना हो उसे बाईं करवट लेकर धीरे से उठना चाहिए।
(2) रोगी को कुछ दिनों तक कागासन में बैठकर थोड़ा-सा अंकुरित या हल्का भोजन करना चाहिए।
(3) रोगी को पानी अधिक से अधिक पीना चाहिए।
(4) रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।
(5) नाभिचक्र से पीड़ित रोगी को कभी भी भारी वजन नहीं उठाना चाहिए।
(2) रोगी को कुछ दिनों तक कागासन में बैठकर थोड़ा-सा अंकुरित या हल्का भोजन करना चाहिए।
(3) रोगी को पानी अधिक से अधिक पीना चाहिए।
(4) रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।
(5) नाभिचक्र से पीड़ित रोगी को कभी भी भारी वजन नहीं उठाना चाहिए।
इस प्रकार से रोगी व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से रोगी का नाभिचक्र अपने स्थान पर आ जाता है तथा नाभिचक्र के हटने के कारण जो रोग व्यक्ति को होते हैं वे भी ठीक हो जाते हैं।